भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की खोज में मैनपुरी के किरथुआ खेड़ा के प्राचीन टीले से 3500-4500 साल पुरानी सभ्यता के आश्चर्यजनक अवशेष मिले हैं। इनमें टेराकोटा की मुहरें, स्याही का पात्र, तांबे की चूड़ियों के टुकड़े, रंग-बिरंगे मनके, और डिज़ाइनर बर्तन शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये अवशेष उस दौर की उन्नत संस्कृति और महिलाओं के श्रृंगार प्रेम को दर्शाते हैं। करहल तहसील के इस टीले से पशु और मानव आकृतियां, महिलाओं के चेहरे की मूर्तियां, और अन्य प्राचीन वस्तुएं भी बरामद हुई हैं, जो महाभारत काल से जुड़ी हो सकती हैं। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की टीम ने दो साल में 20-22 सर्वे किए, जिसमें पक्की मिट्टी की दो मुहरें और स्याही का पात्र मिला, जो संभवतः कलम रखने के लिए था। एएसआई की जांच में ये अवशेष ईसापूर्व 2000-1500 के बताए गए हैं।
श्रृंगार और संस्कृति का अनोखा संगम: खुदाई में लाल, काली, और मिश्रित रंगों के मनके, तांबे की चूड़ियां, और डिज़ाइनर बर्तन मिले हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि उस दौर में महिलाएं गले में मनकों की माला और हाथों में चूड़ियां पहनती थीं, जो उनकी सौंदर्य और सज्जा के प्रति रुचि को दिखाता है।
10 हेक्टेयर का प्राचीन टीला: प्रो. बृजेश्वर दत्त शुक्ला के अनुसार, यह टीला कभी 15-20 मीटर ऊंचा और 10 हेक्टेयर में फैला था, जो अब सिकुड़कर एक हेक्टेयर रह गया है। यहां मिले बर्तन, हड्डियां, सिक्के, और चूड़ियां 4500 साल पुरानी हैं। दो मुहरें और स्याही का पात्र इस बात का सबूत हैं कि उस समय एक उन्नत सभ्यता फल-फूल रही थी, जहां मुहरों का उपयोग विशेष आदेशों के लिए होता होगा।
आगे की खोज की जरूरत: विशेषज्ञों का मानना है कि इस टीले की गहन जांच से अनछुई सभ्यता के और रहस्य खुल सकते हैं। हालांकि, संरक्षण के अभाव में ये अनमोल अवशेष नष्ट होने के कगार पर हैं।