पुलिस ने शुरू की जांच
मैनपुरी के बेवर थाना क्षेत्र के नगरिया गांव में एक 16 वर्षीय किशोर ने माता-पिता की डांट से दुखी होकर फंदा लगाकर अपनी जान दे दी. नौवीं कक्षा में पढ़ने वाला यह छात्र रविवार दोपहर घर से गायब हो गया था. अगली सुबह उसका शव गांव के नदी किनारे एक पेड़ से लटका मिला. घटना से परिवार में कोहराम मच गया. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजकर मामले की जांच शुरू कर दी है.
घटना का विवरण
नगरिया गांव के रहने वाले सुरेंद्र सिंह के 16 साल के बेटे प्रदीप को रविवार दोपहर पढ़ाई को लेकर माता-पिता ने डांट दिया था. प्रदीप, जो आठवीं पास कर नौवीं कक्षा में पहुंचा था, इस डांट से आहत हो गया. दोपहर में वह बिना कुछ बताए घर से निकल गया. देर शाम तक जब वह नहीं लौटा तो परिजनों की चिंता बढ़ गई. रात भर उसकी तलाश की गई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. सोमवार सुबह ग्रामीणों ने नदी किनारे नीम के पेड़ पर प्रदीप का शव फंदे से लटका देखा. उसने अपनी शर्ट का फंदा बनाकर आत्महत्या कर ली थी.
पुलिस की कार्रवाई
घटना की सूचना मिलते ही बेवर थाना पुलिस मौके पर पहुंची. पुलिस ने शव को फंदे से उतारा और पंचनामा भरकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. प्रदीप के पिता सुरेंद्र ने थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है, जिसमें यह पता लगाया जा रहा है कि किशोर ने यह कदम क्यों उठाया. अभी तक कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है, लेकिन परिजनों ने बताया कि पढ़ाई को लेकर डांट ही इस दुखद घटना की वजह थी. पुलिस अन्य पहलुओं की भी जांच कर रही है.
परिवार का दुख
प्रदीप पांच भाइयों में सबसे छोटा था और परिवार का दुलारा था. उसकी मौत से माता-पिता और भाई-बहन सदमे में हैं. परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है. गांव में भी इस घटना से शोक की लहर है. प्रदीप के दोस्तों और पड़ोसियों ने बताया कि वह पढ़ाई में ठीक था, लेकिन माता-पिता की डांट से वह बहुत दुखी हो गया था. यह घटना बच्चों पर पढ़ाई के दबाव और उनकी मानसिक स्थिति को समझने की जरूरत को रेखांकित करती है.
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान
यह दुखद घटना समाज के लिए एक चेतावनी है कि बच्चों को डांटने या दबाव डालने से पहले उनकी भावनाओं का ध्यान रखना जरूरी है. किशोरावस्था में बच्चे संवेदनशील होते हैं, और छोटी-सी बात भी उनके लिए भारी पड़ सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता को बच्चों से खुलकर बात करनी चाहिए और उनकी समस्याओं को समझना चाहिए. स्कूलों में काउंसलिंग की व्यवस्था और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. प्रदीप की मौत ने समाज को यह सोचने पर मजबूर किया है कि बच्चों की मानसिक सेहत को नजरअंदाज करना कितना खतरनाक हो सकता है.