मैनपुरी के करहल तहसील के किरथुआ खेड़ा में एक ऐतिहासिक खोज ने पुरातत्वविदों को चौंका दिया है। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के इतिहास एवं सांस्कृतिक विभाग की टीम ने यहां 4000 साल पुरानी सभ्यता के अवशेष खोजे हैं। इस खोज में कच्ची-पक्की ईंटों की दीवारें, लाल-काली मिट्टी के बर्तन, टेराकोटा खिलौने, मूर्तियों के टुकड़े, धातु के सिक्के, तांबे की चूड़ियां और 10-15 प्रकार की हड्डियां शामिल हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की जांच में ये अवशेष हड़प्पा काल, प्रथम शताब्दी, कुषाण और गुप्त काल से जुड़े होने की पुष्टि हुई है। कुछ अवशेषों को महाभारत काल से जोड़ा जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व और बढ़ गया है।
खोज का विवरण
किरथुआ खेड़ा में 15-20 मीटर ऊंचा और 10 हेक्टेयर में फैला एक टीला है। ग्रामीणों द्वारा लगातार खुदाई के बावजूद, मंदिर निर्माण के कारण इसका कुछ हिस्सा बचा हुआ था। विश्वविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. बीडी शुक्ला ने अपनी टीम के साथ टीले का सर्वे किया। यहां लाल, काली और मिश्रित मिट्टी से बने घड़े, सुराही, सकोरा, धूसर मृदभांड, चाक निर्मित बर्तन, टेराकोटा खिलौने, मूर्तियों की आकृतियां और धातु के अवशेष मिले। खास बात यह है कि एक 8.2 किलोग्राम वजनी पक्की ईंट की दीवार भी मिली, जिसकी ईंटें 2.5-3 इंच मोटी, 9 इंच चौड़ी और 14 इंच लंबी हैं। ये ईंटें पहली शताब्दी की बताई गई हैं।
हड्डियों की खोज
टीले से 10-12 हड्डियां भी मिलीं, जिनमें से कुछ खराब हालत में थीं। एएसआई की जांच के अनुसार, ये हड्डियां जानवरों की हैं और करीब 1000 ईसा पूर्व पुरानी हैं।
महाभारत काल से संबंध की संभावना
प्रो. बृजेश्वर दत्त शुक्ला ने बताया कि स्थानीय निवासी रवीश कुमार यादव की सूचना पर टीले का दौरा किया गया। एएसआई के विदिशा रिसर्च सेंटर में जांच से पता चला कि कुछ अवशेष 4000 साल पुराने हैं। शोध अभी जारी है, और प्रारंभिक निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि ये अवशेष महाभारत कालीन सभ्यता से भी जुड़े हो सकते हैं। मैनपुरी में पहले भी 4000 साल पुराने तांबे के हथियार मिल चुके हैं, जो इस क्षेत्र के पुरातात्विक महत्व को दर्शाते हैं।
शोध और भविष्य
लखनऊ एएसआई के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर के बाद शोध कार्य तेजी से चल रहा है। कुछ और वस्तुओं की जांच जारी है, जो इस क्षेत्र को भारतीय इतिहास में और महत्वपूर्ण बना सकती है। यह खोज न केवल मैनपुरी के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करती है, बल्कि प्राचीन भारतीय सभ्यता और महाभारत काल के जीवन को समझने में भी मददगार साबित हो सकती है।