डच कमांडर जॉन हेसिंग: लाल ताजमहल के पीछे की कहानी, जहां डच सैनिकों ने झुकाया सिर

डच कमांडर जॉन हेसिंग: लाल ताजमहल की अनकही कहानी, जहां डच सैनिकों ने झुकाया सिर

आगरा: नीदरलैंड और आगरा के बीच 250 साल पुराने ऐतिहासिक रिश्तों को याद करने और मराठा शासन में फौज-ए-हिंद के कमांडर रहे कर्नल जॉन हेसिंग को सम्मान देने के लिए नीदरलैंड की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के अधिकारियों का एक दल आगरा पहुंचा। उन्होंने लाल ताजमहल के नाम से मशहूर जॉन हेसिंग के मकबरे पर सिर झुकाकर श्रद्धांजलि दी। यह मकबरा डच-भारत संबंधों का एक अनूठा प्रतीक है, जिसे हेसिंग की पत्नी एन हेसिंग ने उनके निधन के बाद बनवाया था।

लाल ताजमहल: डच-भारत संबंधों की निशानी

नीदरलैंड दूतावास, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), और सिंधिया अनुसंधान केंद्र के सहयोग से आयोजित इस दौरे में डच सैन्य अधिकारियों ने भगवान टॉकीज चौराहे के पास स्थित इस मकबरे का भ्रमण किया। एएसआई की सहायक पुरातत्वविद आकांक्षा राय चौधरी ने मकबरे के इतिहास और इसकी मुगल-यूरोपीय मिश्रित वास्तुकला की जानकारी दी। सिंधिया अनुसंधान केंद्र के प्रमुख अरुणांश बी गोस्वामी ने 18वीं सताब्दी में मराठा शासन और नीदरलैंड के बीच सैन्य और कूटनीतिक संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि डच सैनिकों ने मराठा शक्ति को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई थी। डच अधिकारियों ने मकबरे की दीवारों को छूकर अपने पूर्वज की मौजूदगी का एहसास किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

कौन थे जॉन हेसिंग?

जॉन विलियम हेसिंग का जन्म 1739 में नीदरलैंड के यूट्रेक्ट में हुआ था। 13 साल की उम्र में उन्होंने डच ईस्ट इंडिया कंपनी (वीओसी) में सैनिक के रूप में सेवा शुरू की और 1752 में श्रीलंका पहुंचे। 1763 में वे भारत आए और हैदराबाद के निजाम की सेना में शामिल हुए। बाद में, 1784 में वे मराठा शासक महादजी सिंधिया की सेना में भर्ती हुए, जहां उन्होंने कई युद्धों में हिस्सा लिया, जिनमें 1787 का भोंडागांव युद्ध और 1795 का खरदा युद्ध शामिल हैं। उनकी वीरता के लिए 1798 में उन्हें कर्नल बनाया गया और 1799 में दौलतराव सिंधिया ने उन्हें आगरा किले का कमांडर नियुक्त किया। 1803 में दूसरी आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान आगरा किले की रक्षा करते हुए उनकी मृत्यु हो गई। कुछ स्रोतों के अनुसार, उनकी मृत्यु लंबी बीमारी के कारण हुई थी।

लाल ताजमहल: प्यार और स्मृति का स्मारक

जॉन हेसिंग की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी एन हेसिंग ने सीमित संसाधनों में एक लाख रुपये की लागत से लाल पत्थर से इस मकबरे का निर्माण करवाया, जो ताजमहल की छोटी प्रतिकृति है। इसे 1803 में बनाया गया और स्थानीय लोग इसे “जॉन साहब का रौजा” भी कहते हैं। यह मकबरा रोमन कैथोलिक कब्रिस्तान (पाद्रेतोला) में स्थित है, जिसे 1550 के दशक में मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में अर्मेनियाई ईसाइयों द्वारा स्थापित किया गया था। मकबरे की वास्तुकला में मुगल शैली का प्रभाव है, जिसमें यूरोपीय तत्वों का हल्का मिश्रण है। इसमें फारसी शिलालेख हैं, जिनमें एन हेसिंग ने अपने पति के निधन पर अपने दुख को व्यक्त किया है। यह मकबरा डच और भारतीय संस्कृतियों के मेल का एक अनूठा उदाहरण है।

250 साल पुराना डच-भारत संबंध

18वीं सताब्दी में आगरा एक अंतरराष्ट्रीय शहर था, जहां यूरोपीय और भारतीय संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता था। डच, अंग्रेज, और फ्रांसीसी सैनिक स्थानीय शासकों की सेनाओं में शामिल होकर अपनी किस्मत आजमाते थे। जॉन हेसिंग की कहानी इस सांस्कृतिक मेल का एक जीवंत उदाहरण है। लाल ताजमहल न केवल उनकी सैन्य उपलब्धियों, बल्कि उनकी पत्नी के प्यार और समर्पण का भी प्रतीक है।

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