हिंदू देवी-देवताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी का मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने योगी सरकार से मांगा कार्रवाई का ब्योरा, 15 जुलाई को सुनवाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने हरियाणा के संत रामपाल के संस्थानों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में हिंदू देवी-देवताओं पर की गई आपत्तिजनक और अश्लील टिप्पणियों के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से सख्त सवाल किए हैं। कोर्ट ने पूछा है कि इस मामले में अब तक क्या कार्रवाई की गई और क्या सरकार कोई ठोस कदम उठाने जा रही है। हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ट्रस्ट की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने राज्य सरकार को 15 जुलाई 2025 को होने वाली सुनवाई में कार्रवाई का पूरा ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया है। याचिका में ऐसी पुस्तकों पर तत्काल प्रतिबंध और विशेष जांच दल (SIT) से मामले की जांच की मांग की गई है।

विस्तार

लखनऊ, 15 जुलाई 2025: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियों के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। हरियाणा के संत रामपाल के संस्थानों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में हिंदू देवी-देवताओं के प्रति अश्लील और अपमानजनक टिप्पणियों की शिकायत पर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है। हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका में इन पुस्तकों पर तत्काल प्रतिबंध लगाने और मामले की गहन जांच के लिए विशेष अनुसंधान दल (SIT) गठित करने की मांग की गई है।

कोर्ट का आदेश और सुनवाई

न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील मनीष मिश्र को निर्देश दिया कि 15 जुलाई 2025 को होने वाली अगली सुनवाई में सरकार द्वारा अब तक की गई कार्रवाई या प्रस्तावित कार्रवाई का विस्तृत ब्योरा पेश किया जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आवश्यक हुआ, तो याचिका के निजी पक्षकारों को नोटिस जारी किया जाएगा। यह आदेश हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ट्रस्ट की ओर से दायर याचिका के जवाब में दिया गया, जिसमें संत रामपाल के संस्थानों की पुस्तकों में हिंदू धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली सामग्री का आरोप लगाया गया है।

याचिका में क्या है?

हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ट्रस्ट की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने कोर्ट में तर्क दिया कि संत रामपाल के संस्थानों द्वारा प्रकाशित कई पुस्तकों में हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक, अश्लील, और अपमानजनक टिप्पणियां की गई हैं। इन पुस्तकों का कथित उद्देश्य हिंदू धर्म को नीचा दिखाना और धार्मिक भावनाओं को आहत करना है। अधिवक्ता ने बताया कि इस संबंध में प्रमुख सचिव (गृह), उत्तर प्रदेश को शिकायत दी गई थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। याचिका में मांग की गई है कि:

  • ऐसी पुस्तकों पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए।
  • मामले की जांच के लिए विशेष अनुसंधान दल (SIT) गठित किया जाए।
  • धार्मिक भावनाओं को आहत करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।

सामाजिक और धार्मिक संदर्भ

यह मामला उत्तर प्रदेश में धार्मिक भावनाओं को आहत करने से जुड़े कई हालिया विवादों की कड़ी में एक और महत्वपूर्ण घटना है। हाल के वर्षों में, सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियों और सामग्री के कई मामले सामने आए हैं। उदाहरण के लिए:

  • फिरोजाबाद (अप्रैल 2025): एक युवक को सोशल मीडिया पर हिंदू देवी-देवताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के लिए गिरफ्तार किया गया।
  • गाजीपुर (फरवरी 2025): इंस्टाग्राम पर हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले 20 वर्षीय मोहित कुमार को पुलिस ने हिरासत में लिया।
  • बरेली (मार्च 2025): हिंदू देवी-देवताओं की आपत्तिजनक तस्वीरें पोस्ट करने के आरोप में एक युवक को गिरफ्तार किया गया।
  • चंदौली (जनवरी 2025): राहुल कुमार नामक युवक को हिंदू देवी-देवताओं की आपत्तिजनक तस्वीरें और टिप्पणियां पोस्ट करने के लिए गिरफ्तार किया गया।

इन घटनाओं ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मुद्दे को और गंभीर बना दिया है, जिसके चलते सामाजिक तनाव और कानूनी कार्रवाइयां बढ़ी हैं। संत रामपाल के संस्थानों से जुड़ा यह मामला भी इसी तरह की संवेदनशीलता को दर्शाता है।

संत रामपाल और विवाद

संत रामपाल, जो हरियाणा के हिसार जिले में सतलोक आश्रम के संस्थापक हैं, पहले भी कई विवादों में घिर चुके हैं। उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने, अवैध गतिविधियों, और हिंसा भड़काने के आरोप लगे हैं। 2014 में, उन्हें हिसार में उनके आश्रम में हिंसक झड़पों के बाद गिरफ्तार किया गया था। उनकी संस्था द्वारा प्रकाशित पुस्तकों पर पहले भी सवाल उठे हैं, और इस बार हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने इन पुस्तकों में हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ कथित अपमानजनक सामग्री को लेकर कोर्ट का रुख किया है।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह मामला न केवल धार्मिक भावनाओं को आहत करने से जुड़ा है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन का भी सवाल उठाता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक समान मामले में कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत युक्तियुक्त प्रतिबंधों के अधीन है। इस मामले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का फैसला इस मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है।

हिंदू संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और मांग की है कि ऐसी सामग्री पर सख्ती से रोक लगाई जाए। दूसरी ओर, कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताकर इसका विरोध कर सकते हैं। यह मामला उत्तर प्रदेश में सामाजिक सौहार्द और कानून-व्यवस्था के लिए भी एक चुनौती बन सकता है।

सरकार की स्थिति

याचिका में कहा गया है कि प्रमुख सचिव (गृह) को इस मामले की शिकायत दी गई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। कोर्ट ने अब सरकार से इस पर स्पष्ट जवाब मांगा है। उत्तर प्रदेश सरकार, जो धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामलों में सख्त रुख अपनाने के लिए जानी जाती है, इस मामले में अपनी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए मजबूर है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहले भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की बात कही है, और इस मामले में सरकार की प्रतिक्रिया पर सभी की नजरें टिकी हैं।

अगली सुनवाई और संभावित परिणाम

15 जुलाई 2025 को होने वाली सुनवाई में राज्य सरकार को अपनी कार्रवाई का ब्योरा पेश करना होगा। यदि सरकार कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिखा पाती, तो कोर्ट याचिका के निजी पक्षकारों को नोटिस जारी कर सकता है, जिससे मामला और जटिल हो सकता है। इसके अलावा, यदि कोर्ट इन पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने या SIT जांच का आदेश देता है, तो यह संत रामपाल और उनके संस्थानों के लिए बड़ा झटका होगा। साथ ही, यह धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले मामलों में कानूनी कार्रवाई के लिए एक मिसाल बन सकता है।

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