उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा जिलों की सीमा पर बसा फकीरे की मड़ैया गांव पिछले कई वर्षों से दोहरी प्रशासनिक व्यवस्था के कारण चर्चा में बना हुआ है. यह गांव एक ऐसा उदाहरण है जहां ग्राम प्रधान का चुनाव आगरा जिले की बाह तहसील से होता है जबकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में यहां के मतदाता इटावा जिले के अंतर्गत आते हैं. इस अनोखी व्यवस्था से गांव के करीब 900 मतदाता सीधे तौर पर प्रभावित होते रहे हैं.
गांव का इतिहास आजादी के बाद से जुड़ा है जब इसे यमुना नदी के किनारे बसाया गया था. प्रशासनिक रूप से यह गांव बाह तहसील की ग्राम पंचायत पारना का हिस्सा था और सभी चुनावी तथा विकास कार्यों के लिए आगरा जिले में ही इसकी भागीदारी होती थी. लेकिन वर्ष 1996 में राजनीतिक समीकरणों के चलते इसकी चुनावी सीमाएं बदल दी गईं. पंचायत चुनावों को छोड़कर बाकी सभी चुनावों के लिए यह गांव इटावा जनपद के जसवंतनगर विकास खंड में शामिल कर दिया गया.
इस बदलाव के बाद गांव की स्थिति उलझनभरी हो गई. ग्राम पंचायत, प्रधान और पंचायत विकास योजनाएं तो आगरा से संचालित होती रहीं लेकिन राजस्व, सांसद और विधायक से संबंधित मामलों के लिए ग्रामीणों को इटावा के चक्कर लगाने पड़ते थे. इससे विकास कार्यों में भी रुकावट आई और ग्रामीणों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
लगातार शिकायतों के बाद शासन ने 6 नवंबर 2015 को एक आदेश जारी कर फकीरे की मड़ैया को आगरा से हटाकर इटावा जिले के जसवंतनगर विकास खंड की ग्राम पंचायत बाऊथ में शामिल कर दिया. हालांकि, इसके बावजूद पंचायत चुनाव अब तक पुरानी व्यवस्था के तहत ही होते रहे हैं.
अब इस दोहरी व्यवस्था को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाया जा रहा है. अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 2026 में होने वाले पंचायत चुनावों में फकीरे की मड़ैया को पूर्ण रूप से इटावा जनपद में शामिल कर दिया जाएगा. इससे गांव को एक स्थायी और स्पष्ट प्रशासनिक पहचान मिलेगी. दशकों से चली आ रही दोहरी व्यवस्था का अंत होगा और ग्रामीणों को एकीकृत विकास योजनाओं का लाभ मिल सकेगा.
यह परिवर्तन न केवल प्रशासनिक रूप से गांव को सशक्त करेगा बल्कि विकास के रास्ते भी सुगम करेगा. ग्रामीणों को अब उम्मीद है कि इस बदलाव के बाद उनके गांव को वह पहचान और सुविधाएं मिलेंगी जिनका वे वर्षों से इंतजार कर रहे थे.