“राणा सांगा विवाद: भारत सरकार को विपक्षी बनाने की मांग, 22 जुलाई को होगी अगली सुनवाई”

आगरा में राणा सांगा से जुड़े एक विवादास्पद मामले ने नया मोड़ ले लिया है। इस मामले में समाजवादी पार्टी (सपा) के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ दायर एक प्रकीर्ण वाद में शुक्रवार (11 जुलाई 2025) को सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में सुनवाई हुई। वादी पक्ष ने दो महत्वपूर्ण प्रार्थना पत्र दाखिल किए: एक, भारत सरकार को इस मामले में विपक्षी बनाने के लिए, और दूसरा, इस वाद को प्रतिनिधि वाद (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) के रूप में दर्ज करने के लिए। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 22 जुलाई 2025 तय की है, जब इन प्रार्थना पत्रों पर विचार किया जाएगा। यह मामला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का होने के कारण व्यापक ध्यान आकर्षित कर रहा है।

घटना का पूरा विवरण:

राणा सांगा, जो मेवाड़ के प्रसिद्ध राजपूत शासक थे, पर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में यह वाद दायर किया गया है। अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने सपा नेताओं रामजीलाल सुमन और अखिलेश यादव के खिलाफ यह प्रकीर्ण वाद दायर किया था। इस मामले में पहले जिला जज संजय कुमार मलिक ने 13 मई 2025 को आदेश जारी कर केस को फिर से दर्ज करने का निर्देश दिया था।

शुक्रवार को हुई सुनवाई में वादी पक्ष ने दो प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किए। पहला प्रार्थना पत्र भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय को इस मामले में विपक्षी बनाने के लिए था, जिसे सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 80(2) और आदेश 1 नियम 10 के तहत दायर किया गया। दूसरा प्रार्थना पत्र इस केस को प्रतिनिधि वाद के रूप में दर्ज करने के लिए था, जिसे सीपीसी के आदेश 1 नियम 8 के तहत दाखिल किया गया। अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने तर्क दिया कि राणा सांगा से जुड़ा यह मामला जनहित और ऐतिहासिक महत्व का है, इसलिए इसे प्रतिनिधि वाद के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।

भारत सरकार को विपक्षी बनाने की मांग:

वादी पक्ष का कहना है कि राणा सांगा का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है, और इस मामले में भारत सरकार, विशेष रूप से संस्कृति मंत्रालय, एक आवश्यक पक्षकार है। जिला जज संजय कुमार मलिक ने अपने 13 मई के आदेश में कहा था कि अदालत को यह तय करना होगा कि क्या भारत सरकार इस मामले में आवश्यक पक्षकार है। वादी ने तर्क दिया कि चूंकि यह मामला राष्ट्रीय और सांस्कृतिक महत्व का है, इसलिए भारत सरकार को विपक्षी बनाना जरूरी है।

सीपीसी की धारा 80(2) के तहत भारत सरकार को विपक्षी बनाने के लिए दो महीने की नोटिस अवधि का प्रावधान है। हालांकि, वादी ने इस समय सीमा में छूट के लिए प्रार्थना पत्र दाखिल किया है, ताकि मामले में तेजी से सुनवाई हो सके।

प्रतिनिधि वाद के रूप में दर्ज करने की मांग:

वादी ने यह भी मांग की है कि इस केस को प्रतिनिधि वाद के रूप में दर्ज किया जाए, क्योंकि यह मामला केवल व्यक्तिगत शिकायत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राणा सांगा जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्व के सम्मान और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा है। सीपीसी के आदेश 1 नियम 8 के तहत यह प्रावधान है कि जनहित से जुड़े मामलों को प्रतिनिधि वाद के रूप में दर्ज किया जा सकता है।

अगली सुनवाई और संभावित प्रभाव:

अदालत ने दोनों प्रार्थना पत्रों पर विचार करने के लिए अगली सुनवाई की तारीख 22 जुलाई 2025 निर्धारित की है। इस सुनवाई में यह तय होगा कि क्या भारत सरकार को इस मामले में विपक्षी बनाया जाएगा और क्या इस केस को प्रतिनिधि वाद के रूप में दर्ज किया जाएगा। यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के कारण भी सुर्खियों में है।

सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ:

राणा सांगा मेवाड़ के एक महान योद्धा और राजपूत शासक थे, जिन्हें भारतीय इतिहास में उनके साहस और नेतृत्व के लिए याद किया जाता है। उनसे जुड़ा कोई भी विवाद सांस्कृतिक और ऐतिहासिक भावनाओं को प्रभावित कर सकता है। यह मामला राजपूत समुदाय और इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों के लिए विशेष रूप से संवेदनशील है। साथ ही, यह केस सियासी दलों और नेताओं की टिप्पणियों के प्रति जवाबदेही के सवाल भी उठाता है।

कानूनी नजरिया:

यह मामला यह भी दर्शाता है कि ऐतिहासिक व्यक्तित्वों पर टिप्पणी से जुड़े विवादों में कानूनी प्रक्रिया कैसे काम करती है। भारत सरकार को विपक्षी बनाने की मांग इस केस को और जटिल बनाती है, क्योंकि इसमें राष्ट्रीय स्तर की नीतियों और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का सवाल शामिल हो सकता है।

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