राजनीतिक दलों पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राजनीतिक दलों द्वारा क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने पर गहरी चिंता जताई है. अदालत ने कहा कि वोट हासिल करने के लिए क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना देश की एकता और अखंडता के लिए उतना ही खतरनाक है जितना सांप्रदायिकता. यह टिप्पणी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पंजीकरण को रद्द करने की मांग वाली याचिका की सुनवाई के दौरान आई. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने इस मामले में याचिकाकर्ता को व्यापक सुधारों के लिए नई याचिका दायर करने की सलाह दी.
याचिकाकर्ता तिरुपति नरसिम्हा मुरारी ने दावा किया था कि एआईएमआईएम का संविधान धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह केवल मुस्लिम समुदाय के हितों को बढ़ावा देता है. उनके वकील विष्णु शंकर जैन ने तर्क दिया कि पार्टी का संविधान इस्लामी शिक्षा और शरिया कानून को प्राथमिकता देता है, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए के तहत पंजीकरण के लिए अनुचित है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि एआईएमआईएम का संविधान भारतीय संविधान के खिलाफ नहीं है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान अल्पसंख्यकों को अपने अधिकारों की रक्षा का हक देता है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक व्यापक मुद्दे पर ध्यान दिलाया. पीठ ने कहा कि किसी एक पार्टी को निशाना बनाने के बजाय, क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता जैसे मुद्दों पर व्यापक सुधारों की जरूरत है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह बिना किसी विशेष दल को निशाना बनाए, चुनावी सुधारों के लिए नई याचिका दायर करे. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि कई राजनीतिक दल क्षेत्रीय और सांप्रदायिक आधार पर वोट मांगते हैं, जो देश की एकता के लिए खतरा है. यह एक ग्रे एरिया है, जिस पर कानूनी स्पष्टता की जरूरत है.
याचिकाकर्ता के वकील ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123(3) का हवाला दिया, जिसमें धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर वोट मांगना भ्रमष्ट आचरण माना गया है. उन्होंने तर्क दिया कि धार्मिक उद्देश्यों वाली पार्टियों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. कोर्ट ने इस तर्क को आंशिक रूप से स्वीकार किया, लेकिन कहा कि एआईएमआईएम के संविधान में ऐसा कुछ नहीं है जो संविधान के खिलाफ हो. कोर्ट ने इस मुद्दे को व्यापक स्तर पर उठाने की सलाह दी ताकि सभी दलों के लिए एकसमान नियम लागू हो.
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारत की राजनीति में क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता के दुरुपयोग पर एक महत्वपूर्ण संदेश है. अदालत ने स्पष्ट किया कि देश की एकता को कमजोर करने वाली कोई भी प्रवृत्ति स्वीकार्य नहीं है. यह फैसला राजनीतिक दलों के लिए आत्ममंथन का मौका देता है और भविष्य में चुनावी सुधारों की दिशा में कदम उठाने का संकेत देता है.