भारत-नेपाल सीमा को ‘इस्लामिक लैंड’ में बदलने की गहरी साजिश का पर्दाफाश हुआ है। आयकर विभाग की गोपनीय जांच ने इस खतरनाक नेटवर्क को उजागर किया है, जिसमें दक्षिण भारत की धार्मिक संस्थाओं से भारी फंडिंग के जरिए अवैध धर्मांतरण, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हो रहा था। इस सनसनीखेज खुलासे के बाद गृह मंत्रालय, केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियां, और उत्तर प्रदेश सरकार ने तत्काल कार्रवाई शुरू कर दी है। बलरामपुर के कुख्यात धर्मांतरण रैकेट के सरगना जमालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा जैसे राष्ट्रविरोधी तत्वों पर शिकंजा कसा गया है, और अवैध रूप से बने मदरसों, मस्जिदों, और मजारों को ध्वस्त किया जा रहा है। यह मामला न केवल सीमावर्ती क्षेत्रों की डेमोग्राफी को बदलने की साजिश को उजागर करता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर भी गंभीर सवाल उठाता है।
आयकर विभाग की जांच: साजिश की परतें उजागर
आयकर विभाग की लखनऊ इकाई ने फरवरी 2025 में भारत-नेपाल सीमा से सटे जिलों में 2000 रुपये के नोटों की अदला-बदली की सूचना पर छापेमारी शुरू की थी। इस दौरान यूपीआई ट्रांजेक्शन के जरिए संदिग्ध बैंक खातों में करोड़ों रुपये के लेनदेन का पता चला। जांच में सामने आया कि पिछले तीन वर्षों में करीब 500 करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग प्राप्त हुई, जिसमें से 300 करोड़ रुपये नेपाल के बैंक खातों के जरिए आए। इन फंड्स का इस्तेमाल अवैध धर्मांतरण, मस्जिदों, मदरसों, और मजारों के निर्माण में किया जा रहा था। विशेष रूप से, तमिलनाडु की एक धार्मिक संस्था से बलरामपुर के एक व्यक्ति के खाते में 12 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए, जिसकी जांच अब गहराई से की जा रही है।
जांच में यह भी खुलासा हुआ कि छांगुर बाबा और उसकी सहयोगी नीतू उर्फ नसरीन जैसे लोग इस फंडिंग का इस्तेमाल कर सीमावर्ती क्षेत्रों में सुनियोजित तरीके से डेमोग्राफी बदलने की कोशिश कर रहे थे। नेपाल के नवलपरासी, रुपनदेही, और बांके जैसे जिलों में 100 से अधिक बैंक खातों के जरिए यह नेटवर्क संचालित हो रहा था। आयकर विभाग ने रक्सौल, रुपैडीहा, बढ़नी, और कोयलाबास जैसे सीमावर्ती इलाकों में छापेमारी कर इस रैकेट की गहरी जड़ों का पता लगाया।
डेमोग्राफी में बदलाव: मुस्लिम आबादी में वृद्धि
आयकर विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर, और सिद्धार्थनगर जैसे नेपाल सीमा से सटे जिलों में पिछले 15 वर्षों में मुस्लिम आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जबकि हिंदू आबादी में कमी देखी गई है। यह बदलाव सुनियोजित तरीके से किया जा रहा था, जिसमें अवैध धर्मांतरण और गैर-कानूनी बसावट मुख्य हथियार थे। जांच में संकेत मिले हैं कि छांगुर जैसे तत्वों ने गरीब और असहाय लोगों को लालच, धमकी, और लव जिहाद के जरिए धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया। बलरामपुर के मधपुर गांव में छांगुर की दरगाह इस रैकेट का मुख्य केंद्र थी, जहां से 3000-4000 लोगों का धर्म परिवर्तन कराया गया, जिनमें 1500 महिलाएं शामिल थीं।
विदेशी फंडिंग और ग्लोबल साजिश
जांच एजेंसियों ने खुलासा किया कि छांगुर का रैकेट विदेशी फंडिंग से संचालित था, जिसमें पाकिस्तान, सऊदी अरब, तुर्की, और दुबई जैसे देशों से 500 करोड़ रुपये की राशि आई। इस फंडिंग का बड़ा हिस्सा नेपाल के बैंक खातों के जरिए ट्रांसफर किया गया। छांगुर और उसकी सहयोगी नीतू उर्फ नसरीन ने स्विस बैंक खातों और दुबई में अपने हिंदू नामों से जमीनें खरीदीं। जांच में यह भी सामने आया कि रैकेट ने धर्मांतरण के लिए जाति के आधार पर रेट तय किए थे: ब्राह्मण, क्षत्रिय, और सिख लड़कियों के लिए 15-16 लाख रुपये, पिछड़ी जातियों के लिए 10-12 लाख रुपये, और अन्य जातियों के लिए 8-10 लाख रुपये।
छांगुर ने ‘शिजर-ए-तैय्यबा’ नामक किताब के जरिए इस्लाम का प्रचार किया और नेपाल सीमा पर इस्लामिक दावा सेंटर और मदरसे स्थापित करने की योजना बनाई। एटीएस की पूछताछ में छांगुर ने कबूल किया कि वह 15 साल से इस अवैध धंधे में लिप्त था और उसका मकसद डेमोग्राफी बदलकर एक इस्लामिक राष्ट्र की नींव रखना था।malwaabhitak.comaajtak.inmalwaabhitak.com
केंद्रीय और राज्य सरकार की कार्रवाई
आयकर विभाग की रिपोर्ट के बाद गृह मंत्रालय ने तत्काल कार्रवाई शुरू की। इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के अधिकारियों ने सीमावर्ती इलाकों का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया, और उत्तर प्रदेश सरकार को अवैध मस्जिदों, मदरसों, और मजारों को ध्वस्त करने के निर्देश दिए। बलरामपुर में छांगुर के खिलाफ नवंबर 2024 में मुकदमा दर्ज हुआ था, लेकिन गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद जुलाई 2025 में उसकी गिरफ्तारी हुई। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) भी इस मामले में सक्रिय हैं, और विदेशी फंडिंग के साथ-साथ अवैध संपत्तियों की जांच कर रही हैं।
दक्षिण भारत की संदिग्ध धार्मिक संस्थाओं पर भी आयकर विभाग की नजर है। तमिलनाडु से 12 करोड़ रुपये की फंडिंग का मामला विशेष जांच के दायरे में है। इसके अलावा, नेपाल के नवलपरासी, रुपनदेही, और बांके में सक्रिय बैंक खातों की जांच तेज कर दी गई है।
सामाजिक और राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव
यह खुलासा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे को उजागर करता है। भारत-नेपाल की खुली सीमा का फायदा उठाकर राष्ट्रविरोधी तत्व न केवल डेमोग्राफी बदलने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि आर्थिक नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। नेपाल सीमा पर बढ़ती कट्टरपंथी गतिविधियां और पाकिस्तान समर्थित मॉड्यूल्स की मौजूदगी पहले भी खुफिया एजेंसियों की चिंता का विषय रही है। छांगुर के रैकेट का कथित आईएसआई कनेक्शन और 40-50 बार इस्लामिक देशों की यात्राएं इस साजिश की गहराई को दर्शाती हैं।
सीमावर्ती गांवों में मुस्लिम आबादी के बढ़ने और हिंदू आबादी के घटने से सामाजिक सौहार्द पर भी असर पड़ रहा है। स्थानीय निवासियों ने शिकायत की है कि अवैध बसावट और धर्मांतरण ने उनके समुदायों को प्रभावित किया है। विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन इस मामले में सक्रिय होकर पीड़ितों की घर वापसी करा रहे हैं, लेकिन धमकियों का सिलसिला जारी है।
प्रशासन और समाज की चुनौतियां
छांगुर जैसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई में देरी ने प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल उठाए हैं। स्थानीय पुलिस और खुफिया एजेंसियों की निष्क्रियता ने इस रैकेट को 15 साल तक फलने-फूलने का मौका दिया। समाज में इस मुद्दे ने धर्मांतरण और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गहन बहस छेड़ दी है। लोगों ने मांग की है कि इस रैकेट के सभी सहयोगियों, विदेशी फंडिंग के स्रोतों, और संदिग्ध संस्थाओं पर कड़ी कार्रवाई हो।